वो कत्‍ल जो बाबा सिद्दीकी के घर से 700 मी दूर हुआ था, 30 साल पुरानी कहानी याद आई

Mumbai Political Killings: बाबा सिद्दीकी की हत्या पिछले तीन दशक में मुंबई के किसी हाई-प्रोफाइल नेता की हत्या का पहला मामला है जिसने पूरे राज्य को चौंका दिया है. 1960 के दशक में मुंबई में इस तरह की पहली राजनीतिक हत्‍या हुई थी. उसके बाद से मुंबई में

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Mumbai Political Killings: बाबा सिद्दीकी की हत्या पिछले तीन दशक में मुंबई के किसी हाई-प्रोफाइल नेता की हत्या का पहला मामला है जिसने पूरे राज्य को चौंका दिया है. 1960 के दशक में मुंबई में इस तरह की पहली राजनीतिक हत्‍या हुई थी. उसके बाद से मुंबई में करीब आधा दर्जन राजनीतिक हत्‍याओं में अंडरवर्ल्‍ड का नाम आया है. 1990 के शुरुआती दशक में भाजपा नेताओं क्रमश: रामदास नायक और प्रेमकुमार शर्मा की भी गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. शिवसेना विधायक रहे विट्ठल चह्वाण और रमेश मोरे की भी मुंबई में 90 के दशक में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

रामदास नायक (Ramdas Nayak): बाबा सिद्दीकी 1999-2014 के बीच तीन बार मुंबई की बांद्रा वेस्‍ट विधानसभा सीट से एमएलए रहे. 30 साल पहले इस निर्वाचन क्षेत्र के एक ही एक महत्‍वपूर्ण नेता की अंडरवर्ल्‍ड हिंसा में जान चली गई थी. रामदास नायक 1978 में खेरवाडी से जनता पार्टी के टिकट पर एमएलए बने थे. उसके बाद वो वांद्रे सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन हार गए. परिसीमन के बाद इस सीट का नाम ही बदलकर बांद्रा वेस्‍ट हो गया. रामदास नायक बाद में भाजपा की मुंबई यूनिट के अध्‍यक्ष रहे. कहा जाता है कि गैंगस्‍टर छोटा शकील ने उनको धमकी दी थी. सरकार से उनको सुरक्षा मिली थी. उनका घर बाबा सिद्दीकी के घर से महज 700 मीटर दूरी पर था. 28 अगस्‍त 1994 को वो अपनी सफेद अंबेसडर कार में सुरक्षाकर्मियों के साथ जब निकले तो छह बदमाश उनका पहले से ही इंतजार कर रहे थे. उनमें छोटा शकील के आदेश पर कुख्‍यात गैंगस्‍टर फिरोज कोकनी और सहयोगी सोनी भी था. उन लोगों ने एके-47 से कार पर गोलियां बरसाईं और नायक एवं सुरक्षाकर्मियों की हत्‍या करने के बाद मोटरसाइकिल से भाग गए.

इस घटना के बाद मुंबई पुलिस ने 12 लोगों को अरेस्‍ट किया. इनमें फिरोज कोकनी भी शामिल था. हालांकि बाद में वो पुलिस कस्‍टडी से भाग निकला. बाकी अधिकांश आरोपी हाई कोर्ट से छूट गए. 13 साल चली कानूनी लड़ाई में उनसे से केवल एक मुजरिम को दोषी करार दिया गया.

विट्ठल चह्वाण: 1990 के दशक में गैंगस्‍टर्स ने इस तरह की कई राजनीतिक हत्‍याएं कीं. 1992 में इसी तरह के एक महत्‍वपूर्ण मामले में शिवसेना एमएलए विट्ठल चह्वाण की हत्‍या गुरु साटम गैंग ने कर दी. कहा जाता है कि पैसों को लेकर विवाद के कारण ये हत्‍या हुई. इस केस में किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सका.

रमेश मोरे: शिवसेना नेता और ट्रेड यूनियन लीडर रमेश मोरे की 29 मई, 1993 में चार लोगों ने उस वक्‍त हत्‍या कर दी जब वो अंधेरी में अपने घर की तरफ जा रहे थे. कहा जाता है कि उनकी हत्‍या अरुण गवली गैंग ने की थी.

प्रेम कुमार शर्मा: रमेश मोरे की हत्‍या के 5 दिन बाद 3 जून, 1993 को दो बार बीजेपी विधायक रहे प्रेम कुमार शर्मा की दो बंदूकधारियों ने उस वक्‍त हत्‍या कर दी जब ग्रांट रोड पर वो अपने परिवार के साथ खाना खाने गए थे. कहा जाता है कि हत्‍यारे दाऊद इब्राहीम गैंग से जुड़े थे.

जियाउद्दीन बुखारी: अप्रैल 1994 में मुस्लिम लीग से विधायक रह चुके प्रमुख मुस्लिम लीडर की बाईकुला में हत्‍या कर दी. अरुण गवली गैंग का नाम सामने आया लेकिन अधिकांश आरोपी सबूतों के अभाव में छूट गए.

दत्‍ता सामंत: 1995 में शिवसेना-बीजेपी पहली बार महाराष्‍ट्र में सत्‍ता में आई. उसके बाद राजनीतिक हत्‍याओं का चक्र रुक गया. बाबा सिद्दीकी से पहले इस तरह की आखिरी राजनीतिक हत्‍या दत्‍ता सामंत की हुई. विधायक और ट्रेड यूनियन लीडर रहे दत्‍ता सामंत 16 जनवरी, 1997 को जब काम के सिलसिले में घाटकोपर जा रहे थे तो उनकी गाड़ी पर चार लोगों ने हमला किया. 17 गोलियां चलाई गईं. जांच के बाद पुलिस ने बताया कि उनकी हत्‍या ट्रेड यूनियनों के बीच प्रतिद्वंद्विता का नतीजा थी. 2000 में छोटा राजन और दो शूटरों को दोषी ठहराया गया. 2023 में छोटा राजन को इस मामले में बरी कर दिया गया.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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